तुम्हारे लौटने तक..

मैं झूठ नहीं कहूँगा।
सब कुछ हमेशा अच्छा नहीं होता।
सभी साथ देने वाले नहीं मिलतें।
सभी तमन्नाएं पूरी नहीं होतीं।
सारे हिसाब सही-सही नहीं बैठते हैं।
मगर क्या और कौन कितना रहेगा यह हम खुद तय कर सकतें हैं।
हर रौशनी के साथ एक साया भी आता है।
तुम रौशनी के साथ रहोगे या साये की ही फिक्र करते रहोगे, यह तुम पर निर्भर करता है।
बची हुई उम्र में कुछ करने का जज्बा साथ होगा या सिर्फ बीती हुई उम्र का अफसोस, यह चुनाव तुम करोगे।
जो तुम्हारे दिल में नहीं बसते, पर तुम्हारे दिमाग में उथल-पुथल मचाते हैं, वह तुम्हारी इजाजत से ही होता है।
पर, तुम खुद से दूर जाते रहोगे या हाथ बढ़ा कर रोक लोगे खुद को, यह मैं तुम पर छोड़ता हूँ।
वक्त ज्यादा नहीं है, पर मैं इंतजार करुँगा – तुम्हारे विवेक के लौटने का, तुम्हारे लौटने का, तुम तक।✍🏻😊

The Paradox of Our Times..

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The paradox of our time in history is that..

we have taller buildings, but shorter tempers;
wider free-ways, but narrower viewpoints.

We spend more, but have less;
we buy more, but enjoy less.
We have bigger houses and smaller families;
more conveniences, but less time.

We have more degrees, but less sense;
more knowledge, but less judgement;
more experts, yet more problems;
more medicine, but less wellness.

We drink too much,
smoke too much,
spend too recklessly,
laugh too little,
drive too fast,
get angry too quickly,
stay up too late,
get up too tired,
read too little,
watch TV too much,
and pray too seldom.

We have multiplied our possessions, but reduced our values.
We talk too much, love too seldom, and hate too often.
We’ve learned how to make a living, but not a life.
If you added years to life, but not life to years.

We’ve been all the way to the moon and back, but have trouble crossing the street to meet and the new neighbour.
We’ve conquered outer-space, but not inner-space.
We’ve done larger things, but not better things…

We’ve conquered the atom, but not our prejudices.
We write more, but learn less.

(~ By BOB MOOREHEAD)

🌿🌿पत्नियों के प्रिय जुमले 🌿🌿

🌿🌿पत्नियों के प्रिय जुमले 🌿🌿
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यदि आप इनसे वंचित हैं तो यकीन मानिए कि आप बहुत सौभाग्यशाली है।
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🎋शादी के तीन महीने बाद 🎋

क्या कर रहे हैं ? कोई आ जाएगा, थोड़ी बहुत शर्म-वर्म है कि नहीं ?

🎋शादी के चार महीने बाद 🎋

सोने दो, तुम्हारी माँ चाहती है कि सुबह छः बजे मैं मन्दिर में उनके साथ 🔔 घंटियां बजाऊँ।

🎋छह महीने बाद 🎋

मेरे मैके नहीं तो, अपनी ससुराल ही ले चलो।

🎋दस महीने बाद 🎋

एेसी हालत में शर्मा जी अपनी पत्नी का कितना ध्यान रखते हैं, और एक तुम हो की?

🎋बारह महीने बाद 🎋

अपनी माँ की तरह बातें मत करो, लडका हो या लडकी क्या फर्क पड़ता है?

🎋पन्द्रह महीने बाद 🎋

जब तुम दुबले-पतले हो तो गुडिया आठ पॉऊण्ड की कैसे होती, हर बात में मुझे ही दोष देते हो।

🎋अट्ठारह महीने बाद 🎋

हाँ-हाँ सब गुडिया से बहुत प्यार करते हैं, लेकिन चेन, अंगुठी तो मेरे मैके वालों ने ही दी, देख लिया सबका प्यार।

🎋दौ साल बाद 🎋

बिट्टो को बुखार है, और तुम आफिस की फाइलों में सर खफा रहे हो? तुममें अक्ल नाम की कोई चीज है कि नहीं?  

🎋तीन साल बाद 🎋

कॉन्वेंट में ही डालेंगे, नहीं तो अपने बाप की तरह रह जाएगी, और तुम तो इस मामले में नहीं बोलो तो ही अच्छा है।

🎋चार साल बाद 🎋

अब तुम्हारा भी एक परिवार है, कब तक माँ बाबूजी के पल्लू से चिपके रहोगे? बड़े भैया को देखो, कितनी चतुराई से अलग हो गये।

🎋 पांच साल बाद 🎋

नौकरी बदलो, ओवर टाईम करो, डाका डालो, अब हमारे खरचे बढ़ गये हैं, पप्पू के खिलौने तक नहीं खरीद पाती, जबकि पप्पू की डिलिवरी तक मेरे मैके मे हुई है, यह कोई रिवाज है भला?

🎋छह साल बाद 🎋

ये मकान ठीक नहीं है, एक रूम कम पडता है।

🎋सात साल बाद 🎋

बच्चों के चक्कर में मुझे तो बिल्कुल भूल ही गये, पांच साल से एक अंगुठी तक नहीं दिलवाई।

🎋आठ साल बाद 🎋

नासिक वाले इंजिनियर ने कितने कितने चक्कर काटे थे, पर मुझे तो तुम्हारे साथ ही बर्बाद होना था।

🎋 नौ साल बाद 🎋

कोई अहसान नहीं करते हो, जो कमा कर खिलाते हो, सभी खिलाते हैं।

🎋दस साल बाद 🎋

बच्चों के नम्बर नहीं आये तो मैं क्या करूं ? अकेली दोनों को पढाती हूँ। तुम्हारे पास न तो टाइम है, ना इन्हे पढाने की अकल।

🎋ग्यारह साल बाद 🎋

खर्चा कम नहीं होगा, कमाई बढ़ाने की चिन्ता करो, और बाबूजी के पी.एफ. का क्या हुआ? मकान के वक्त तो कुछ दिया नहीं, अब जरा सी हेल्प नहीं कर सकते, या राम, भरत को ही देंगे, राजगद्दी?

🎋बारह साल बाद 🎋

मेरे पापा ने मेरी शादी की जिम्मेदारी ली थी, तुम्हारी बहन, भतीजियों की नहीं, शादियों में इतना वक्त दे रहे हैं, यह कम है क्या?

🎋तेरह साल बाद 🎋

ट्रान्सफर हो गया है तो मैं क्या करूं? मैं अपने बच्चों के साथ कहीं नही जाने वाली।

🎋चौदह साल बाद 🎋

क्या खाक मजा आया, बच्चे तो बोर हो गये, तुममें स्टेशन ढूंढने की भी तमीज नहीं है, और होटल भी क्या था.., धर्मशाला जैसा।

🎋पन्द्रह साल बाद 🎋

लौट आये ना? पहले ही कोशिश करते तो ट्रान्सफर होता ही नहीं, लेकिन तुममें इतनी स्मार्टनेस कहाँ है?

🎋सोलह साल बाद 🎋

बच्चे बड़े हो गये हैं, उनसे ढंग से बात किया करो, ये मेरा घर है, तुम्हारा दो टके का आफिस नहीं।

🎋सत्रह साल बाद 🎋

बच्चे घूमने चले गये तो कौन-सा पहाड टूट गया, सब जाते हैं। तुम्हारे भरोसे तो केवल सब्जीमंडी देख सकते हैं.., बात करते हो।

🎋अट्ठारह साल बाद 🎋

डाक्टर ने आराम करने को कहा है, पर मेरी जान तो घर का काम करते – करते ही निकल जायेगी।

🎋उन्नीस साल बाद 🎋

हो जाता है इस उम्र में, बिट्टो को समझा दिया है, अब वो देर रात तक बाहर नहीं रहेगी, पर तुम शुरू मत हो जाना।

🎋बीस साल बाद 🎋

मोटर साइकिल चलाएगा तो गिरेगा ही, पहले ही कहा था, कार दिला दो, तब तो बजट का रोना रो रहे थे।

🎋इक्कीस साल बाद 🎋

डायबिटीज हो गयी है तो मै क्या करूं ? जुबान पर तो लगाम है नहीं, तीन-तीन बार मीठा ठूंसते रहते हो, दवा लो ।

🎋बाइस साल बाद 🎋

ये गीता भाभी का इतना ध्यान क्यों रखते हो? इस उम्र में नाक कटवाओगे क्या?

🎋तेईस साल बाद 🎋

अपने भाईयों के साथ बिजनेस नहीं करोगे। बस एक नौकरी तो ठीक से होती नहीं.., बिजनेस करेंगे, वो भी शातिरों के साथ।

🎋चौबीस साल बाद 🎋

हाँ-हाँ, तो अपने बूते पर ही की है, अपनी बिट्टो की शादी, तुम्हारे परिवारवाले तो मेहमान बन कर आये थे, मेरा भाई नहीं आता तो लडकी की डोली तक नहीं उठती।

🎋पच्चीस साल बाद 🎋

रहने दो, काहे की सिल्वर जुबली, मेरा तो जिगर और फिगर दोनो खराब करके रख दिया तुमने। अच्छा मना लो, पर ज्यादा पटर-पटर मत करना और सब से गिफ्ट भी लेना, हमने भी पचासों जगह बांटी है।

🎋छब्बीस साल बाद 🎋

पढी – लिखी बहू है तो अपने ढंग से रहेगी ही, कानपुर वाली तो तुम बाप-बेटे को जमीं नहीं, अब भुगतो।

🎋सत्ताईस साल बाद 🎋

ससुर-नाना हो गये हो, ये फटे पाजामें में हाल में मत आया करो, मुझे शर्म आती है।

🎋अट्ठाईस साल बाद 🎋

तुम्हे जाना है तो जाओ, मै कहीं नहीं जाऊँगी, पोते को कौन सम्भालेगा? बहू में अक्ल है क्या?

🎋उन्तीस साल बाद 🎋

कोई मन्दिर-वन्दिर नहीं, तीस साल हो गये घंटियाँ बजाते, क्या दिया भगवान् ने, तंगी में ही जी रहे हैं न। 

🎋तीस साल बाद 🎋

देख लो, बीमारी में मैं ही काम आ रही है, बडा दम भरते थे भाई-भाभी का, कोई झांकने तक नहीं आया, चिल्लाओ मत, अभी खांसी शुरू हो जायेगी।

🎋इकत्तीस साल बाद 🎋

आपरेशन से पहले वी.आर एस ले लो, क्या पता बाद में नौकरी करने लायक रहो ना रहो?

🎋बत्तीस साल बाद 🎋

सुबह से हल्ला मत मचाया करो, पचास काम होते हैं घर में, मै तुम्हारी तरह रिटायर नहीं हूं, सुबह से शाम तक सबके लिये खटती हूँ।

🎋तैंतीस साल बाद 🎋

भैया आप तो इन्हें ले जाओ, सुबह से शाम तक सबका जीना हराम कर रखा है, परेशान हो गये हैं, क्या मुसीबत है?

🎋चौंतीस साल बाद 🎋

पप्पू, सारे पेपर अपने नाम करवाले बेटा, अब तेरे पापा का कोई भरोसा नहीं, तबीयत सम्भल भी गयी तो दिमाग की क्या गारंटी है?

🎋पैंतीस साल बाद 🎋

क्या कर रहे हो? कोई आ जाएगा। थोडी शर्म-वर्म है कि नहीं?

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अंत में..  पतियों के लिए..
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🌼जिस किसी भी पडाव में है, भुगतते रहे, कुढते रहे।
नमस्कार..! ;)😝😂

Are Online Relationships Superficial .. ?

I am feeling a bit down these days .. may be because I have been posted to a new place of duty that does not have good connectivity with outside world and joining this new place was bit of a shock for me for my last duty station had broadband internet and 3G phone facilities available. Pertinent to mention here, folks, I am working with defence force of the country and the job profile includes a three-yearly transfer to a new location. But , wait a minute .. why am I sulking now? I joined this service with full knowledge of this fact! May be, I just am a bit confused right now.

One of the reason may also be being away from my ‘net-friends.’ No, I am not a very net-savvy person and large part of initial few years of my Facebook membership I was actually dormant there. I still don’t have close to 5000 friends there .. most of the people there are known to me personally also. I am not able to regularly comment on their postings or do one of my own there. Why only FB, let’s take this blog site itself. I created this site back in 2008, then remained dormant here for about six months then started writing on diverse topics .. irregularly!

It happens most of the time .. whenever I start writing I either get drifted into areas that are not related to my main topic or, loose interest midway. One may take refuse behind some fancy words like ‘writer’s block’ but, deep inside the guilt of letting your readers down remains. That reminds me I am yet to post an article here and it is June already! Sooo Soorry ..! I know most of you have been through this situation and have come out triumphant so, if you can share your magic formula with me … I’ll be indebted.

Again .., drifting away from the topic!

Coming back to the question .. “Are online relationships superficial?”

A word though .., Online Relationships don’t necessarily mean dating or matrimonial kind of relationships only. I mean purely social kind of relationships .. like those in your friend list on FB. This question came to my mind after I saw a lot of people doing regular trimming of their friend list on Facebook. Isn’t it insensitive on our part ..? We are able to remove them because we don’t really know them well and the relationship does not affect us because it does not have deep roots. I wonder if we could remove them had they been known to us in ‘Off- Net Life’. then why do we include them in our friend list at all? Attractive face ..? A mutual friend in your friend list ..?? Opposite gender ..???

Think about it ..

[to be continued]