छोटे लोग

“अनिल झाड़ू पोछा हो जाये तो दरवाजा बंद कर के चले जाना।”, मैंने घर पर काम करने वाले लड़के को यह कहा, पांव में चप्पल डाली, और बाल कटवाने निकल गया।

मेरा मित्र सुरेश अक्सर इस पर गुस्सा होता था, “तूं कैसे इन पर इतना भरोसा कर लेता है? जाने किस जगह से है, कैसा है यह लड़का? छोटे जात का है, किसी दिन कोई गड़बड़ ना कर जाए।”

मेरा जबाब होता – “छोड़ ना यार क्या रखा है घर में खोने को?”

पर उस दिन बाल कटवाते हुए अचानक ख्याल आया कि वॉलेट से पांच सौ के चार नोट निकालें फिर उन्हें बेड पर ही भूल आया था।

कलेजा हलक को आ गया।

हालांकि दो हजार बहुत बड़ी रकम नहीं होती, पर ईमान भटकाने के लिए तो काफी ही है।

जल्दी-जल्दी जैसे-तैसे बाल कटवाए, पैसे दिए और घर की ओर भागा।

धड़कते दिल से बाहर का गेट खोल कर जैसे अंदर आया कि चौंक गया।

अनिल बरामदे में ही खड़ा था।

“ओय, तूं गया नहीं अब तक?”

“नहीं साब, दरवाजा खुला था, इसलिए गया नहीं, ऐसा ठीक नहीं है ना इस कर के।”

मैं बिना कुछ बोले अंदर बेडरूम की ओर भागा।

चार कड़कते पांच सौ के नोट बेड पर पड़े थें।

उस दिन खिड़की के शीशे से बाहर ग्लानी से सर झुका कर काफी देर तक पता नहीं क्या देखता – सोचता रहा।

तुम्हारे लौटने तक..

मैं झूठ नहीं कहूँगा।
सब कुछ हमेशा अच्छा नहीं होता।
सभी साथ देने वाले नहीं मिलतें।
सभी तमन्नाएं पूरी नहीं होतीं।
सारे हिसाब सही-सही नहीं बैठते हैं।
मगर क्या और कौन कितना रहेगा यह हम खुद तय कर सकतें हैं।
हर रौशनी के साथ एक साया भी आता है।
तुम रौशनी के साथ रहोगे या साये की ही फिक्र करते रहोगे, यह तुम पर निर्भर करता है।
बची हुई उम्र में कुछ करने का जज्बा साथ होगा या सिर्फ बीती हुई उम्र का अफसोस, यह चुनाव तुम करोगे।
जो तुम्हारे दिल में नहीं बसते, पर तुम्हारे दिमाग में उथल-पुथल मचाते हैं, वह तुम्हारी इजाजत से ही होता है।
पर, तुम खुद से दूर जाते रहोगे या हाथ बढ़ा कर रोक लोगे खुद को, यह मैं तुम पर छोड़ता हूँ।
वक्त ज्यादा नहीं है, पर मैं इंतजार करुँगा – तुम्हारे विवेक के लौटने का, तुम्हारे लौटने का, तुम तक।✍🏻😊

The Paradox of Our Times..

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The paradox of our time in history is that..

we have taller buildings, but shorter tempers;
wider free-ways, but narrower viewpoints.

We spend more, but have less;
we buy more, but enjoy less.
We have bigger houses and smaller families;
more conveniences, but less time.

We have more degrees, but less sense;
more knowledge, but less judgement;
more experts, yet more problems;
more medicine, but less wellness.

We drink too much,
smoke too much,
spend too recklessly,
laugh too little,
drive too fast,
get angry too quickly,
stay up too late,
get up too tired,
read too little,
watch TV too much,
and pray too seldom.

We have multiplied our possessions, but reduced our values.
We talk too much, love too seldom, and hate too often.
We’ve learned how to make a living, but not a life.
If you added years to life, but not life to years.

We’ve been all the way to the moon and back, but have trouble crossing the street to meet and the new neighbour.
We’ve conquered outer-space, but not inner-space.
We’ve done larger things, but not better things…

We’ve conquered the atom, but not our prejudices.
We write more, but learn less.

(~ By BOB MOOREHEAD)

Lady, How old are You?

My job as Medical professional puts me in a position to go through the personal details of my patients and pose those questions, not asked, out of courtesy, generally.

Of late, I’ve been noticing, no woman patient has come to me who says her age is more than forty – though the physical appearance may be on the contrary – and, some of them are Grannies already! 😉

I wonder how that is possible?
Do they stop growing after that age is reached or it is a deliberate attempt not to accept the fact that we grow old?
And then, the bombardment of commercials about hair-dyes, skin-rejuvenating creams and anti-ageing lotions in media!
If Age is ‘Just’ a number, haven’t We forgotten the ‘Progression’ or ‘Maths’? No one is willing to accept the real age.. and accept ageing gracefully.
What to do?

But, why should I complain?
I think we are definitely a country full of people young at heart!
Oh believe me, I myself am Sixteen for last Thirty years now!!!
;)☺😜

🌿🌿पत्नियों के प्रिय जुमले 🌿🌿

🌿🌿पत्नियों के प्रिय जुमले 🌿🌿
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यदि आप इनसे वंचित हैं तो यकीन मानिए कि आप बहुत सौभाग्यशाली है।
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🎋शादी के तीन महीने बाद 🎋

क्या कर रहे हैं ? कोई आ जाएगा, थोड़ी बहुत शर्म-वर्म है कि नहीं ?

🎋शादी के चार महीने बाद 🎋

सोने दो, तुम्हारी माँ चाहती है कि सुबह छः बजे मैं मन्दिर में उनके साथ 🔔 घंटियां बजाऊँ।

🎋छह महीने बाद 🎋

मेरे मैके नहीं तो, अपनी ससुराल ही ले चलो।

🎋दस महीने बाद 🎋

एेसी हालत में शर्मा जी अपनी पत्नी का कितना ध्यान रखते हैं, और एक तुम हो की?

🎋बारह महीने बाद 🎋

अपनी माँ की तरह बातें मत करो, लडका हो या लडकी क्या फर्क पड़ता है?

🎋पन्द्रह महीने बाद 🎋

जब तुम दुबले-पतले हो तो गुडिया आठ पॉऊण्ड की कैसे होती, हर बात में मुझे ही दोष देते हो।

🎋अट्ठारह महीने बाद 🎋

हाँ-हाँ सब गुडिया से बहुत प्यार करते हैं, लेकिन चेन, अंगुठी तो मेरे मैके वालों ने ही दी, देख लिया सबका प्यार।

🎋दौ साल बाद 🎋

बिट्टो को बुखार है, और तुम आफिस की फाइलों में सर खफा रहे हो? तुममें अक्ल नाम की कोई चीज है कि नहीं?  

🎋तीन साल बाद 🎋

कॉन्वेंट में ही डालेंगे, नहीं तो अपने बाप की तरह रह जाएगी, और तुम तो इस मामले में नहीं बोलो तो ही अच्छा है।

🎋चार साल बाद 🎋

अब तुम्हारा भी एक परिवार है, कब तक माँ बाबूजी के पल्लू से चिपके रहोगे? बड़े भैया को देखो, कितनी चतुराई से अलग हो गये।

🎋 पांच साल बाद 🎋

नौकरी बदलो, ओवर टाईम करो, डाका डालो, अब हमारे खरचे बढ़ गये हैं, पप्पू के खिलौने तक नहीं खरीद पाती, जबकि पप्पू की डिलिवरी तक मेरे मैके मे हुई है, यह कोई रिवाज है भला?

🎋छह साल बाद 🎋

ये मकान ठीक नहीं है, एक रूम कम पडता है।

🎋सात साल बाद 🎋

बच्चों के चक्कर में मुझे तो बिल्कुल भूल ही गये, पांच साल से एक अंगुठी तक नहीं दिलवाई।

🎋आठ साल बाद 🎋

नासिक वाले इंजिनियर ने कितने कितने चक्कर काटे थे, पर मुझे तो तुम्हारे साथ ही बर्बाद होना था।

🎋 नौ साल बाद 🎋

कोई अहसान नहीं करते हो, जो कमा कर खिलाते हो, सभी खिलाते हैं।

🎋दस साल बाद 🎋

बच्चों के नम्बर नहीं आये तो मैं क्या करूं ? अकेली दोनों को पढाती हूँ। तुम्हारे पास न तो टाइम है, ना इन्हे पढाने की अकल।

🎋ग्यारह साल बाद 🎋

खर्चा कम नहीं होगा, कमाई बढ़ाने की चिन्ता करो, और बाबूजी के पी.एफ. का क्या हुआ? मकान के वक्त तो कुछ दिया नहीं, अब जरा सी हेल्प नहीं कर सकते, या राम, भरत को ही देंगे, राजगद्दी?

🎋बारह साल बाद 🎋

मेरे पापा ने मेरी शादी की जिम्मेदारी ली थी, तुम्हारी बहन, भतीजियों की नहीं, शादियों में इतना वक्त दे रहे हैं, यह कम है क्या?

🎋तेरह साल बाद 🎋

ट्रान्सफर हो गया है तो मैं क्या करूं? मैं अपने बच्चों के साथ कहीं नही जाने वाली।

🎋चौदह साल बाद 🎋

क्या खाक मजा आया, बच्चे तो बोर हो गये, तुममें स्टेशन ढूंढने की भी तमीज नहीं है, और होटल भी क्या था.., धर्मशाला जैसा।

🎋पन्द्रह साल बाद 🎋

लौट आये ना? पहले ही कोशिश करते तो ट्रान्सफर होता ही नहीं, लेकिन तुममें इतनी स्मार्टनेस कहाँ है?

🎋सोलह साल बाद 🎋

बच्चे बड़े हो गये हैं, उनसे ढंग से बात किया करो, ये मेरा घर है, तुम्हारा दो टके का आफिस नहीं।

🎋सत्रह साल बाद 🎋

बच्चे घूमने चले गये तो कौन-सा पहाड टूट गया, सब जाते हैं। तुम्हारे भरोसे तो केवल सब्जीमंडी देख सकते हैं.., बात करते हो।

🎋अट्ठारह साल बाद 🎋

डाक्टर ने आराम करने को कहा है, पर मेरी जान तो घर का काम करते – करते ही निकल जायेगी।

🎋उन्नीस साल बाद 🎋

हो जाता है इस उम्र में, बिट्टो को समझा दिया है, अब वो देर रात तक बाहर नहीं रहेगी, पर तुम शुरू मत हो जाना।

🎋बीस साल बाद 🎋

मोटर साइकिल चलाएगा तो गिरेगा ही, पहले ही कहा था, कार दिला दो, तब तो बजट का रोना रो रहे थे।

🎋इक्कीस साल बाद 🎋

डायबिटीज हो गयी है तो मै क्या करूं ? जुबान पर तो लगाम है नहीं, तीन-तीन बार मीठा ठूंसते रहते हो, दवा लो ।

🎋बाइस साल बाद 🎋

ये गीता भाभी का इतना ध्यान क्यों रखते हो? इस उम्र में नाक कटवाओगे क्या?

🎋तेईस साल बाद 🎋

अपने भाईयों के साथ बिजनेस नहीं करोगे। बस एक नौकरी तो ठीक से होती नहीं.., बिजनेस करेंगे, वो भी शातिरों के साथ।

🎋चौबीस साल बाद 🎋

हाँ-हाँ, तो अपने बूते पर ही की है, अपनी बिट्टो की शादी, तुम्हारे परिवारवाले तो मेहमान बन कर आये थे, मेरा भाई नहीं आता तो लडकी की डोली तक नहीं उठती।

🎋पच्चीस साल बाद 🎋

रहने दो, काहे की सिल्वर जुबली, मेरा तो जिगर और फिगर दोनो खराब करके रख दिया तुमने। अच्छा मना लो, पर ज्यादा पटर-पटर मत करना और सब से गिफ्ट भी लेना, हमने भी पचासों जगह बांटी है।

🎋छब्बीस साल बाद 🎋

पढी – लिखी बहू है तो अपने ढंग से रहेगी ही, कानपुर वाली तो तुम बाप-बेटे को जमीं नहीं, अब भुगतो।

🎋सत्ताईस साल बाद 🎋

ससुर-नाना हो गये हो, ये फटे पाजामें में हाल में मत आया करो, मुझे शर्म आती है।

🎋अट्ठाईस साल बाद 🎋

तुम्हे जाना है तो जाओ, मै कहीं नहीं जाऊँगी, पोते को कौन सम्भालेगा? बहू में अक्ल है क्या?

🎋उन्तीस साल बाद 🎋

कोई मन्दिर-वन्दिर नहीं, तीस साल हो गये घंटियाँ बजाते, क्या दिया भगवान् ने, तंगी में ही जी रहे हैं न। 

🎋तीस साल बाद 🎋

देख लो, बीमारी में मैं ही काम आ रही है, बडा दम भरते थे भाई-भाभी का, कोई झांकने तक नहीं आया, चिल्लाओ मत, अभी खांसी शुरू हो जायेगी।

🎋इकत्तीस साल बाद 🎋

आपरेशन से पहले वी.आर एस ले लो, क्या पता बाद में नौकरी करने लायक रहो ना रहो?

🎋बत्तीस साल बाद 🎋

सुबह से हल्ला मत मचाया करो, पचास काम होते हैं घर में, मै तुम्हारी तरह रिटायर नहीं हूं, सुबह से शाम तक सबके लिये खटती हूँ।

🎋तैंतीस साल बाद 🎋

भैया आप तो इन्हें ले जाओ, सुबह से शाम तक सबका जीना हराम कर रखा है, परेशान हो गये हैं, क्या मुसीबत है?

🎋चौंतीस साल बाद 🎋

पप्पू, सारे पेपर अपने नाम करवाले बेटा, अब तेरे पापा का कोई भरोसा नहीं, तबीयत सम्भल भी गयी तो दिमाग की क्या गारंटी है?

🎋पैंतीस साल बाद 🎋

क्या कर रहे हो? कोई आ जाएगा। थोडी शर्म-वर्म है कि नहीं?

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अंत में..  पतियों के लिए..
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🌼जिस किसी भी पडाव में है, भुगतते रहे, कुढते रहे।
नमस्कार..! ;)😝😂

अर्थ का अनर्थ

कई दुकानदार अखबारों को काट कर लिफाफे बना लेते हैं…

पर कई दफा जोड़ लगाते समय दो अखबारों की खबरें इस तरह जुड़ जाती हैं कि उनके मतलब कुछ के कुछ और ही बन जाते हैं!

कुछ नमूनें देखें:

1. अमरीका के राष्ट्रपति….कानपुर के पास चोरी की भैंसों समेत गिरफ्तार!

2. अमरीकी फौजों द्वारा इराक की जेलों में….चमेली बाई के साथ भंगड़े की क्लासें 23 जुलाई से शुरू!

3. अफगानिस्तान की जेलों में छिपे लादिन को….पंजाब सरकार की ओर से बुढ़ापा पैन्शन देने का एलान!

3. मुख्यमंत्री के घर पर….भैंस ने छ: टाँगों वाले  बच्चे को जन्म दिया!

4. अपने हरमन प्यारे नेता को वोट डालकर….मर्दाना ताकत हासिल करें!

5. अटल बिहारी वाजपाई ने ज़ोर देकर कहा….एक सुन्दर और सुशील कन्या की ज़रूरत!

6. तिहाड़ जेल से छ: कैदी फरार….भारत को ओलंपिक्स में सोने के तमगे की उम्मीद!

7. क्या आपकी नज़र कमज़ोर है? आज ही आऐं….ठेका देशी शराब!

8. बेऔलाद दंपत्ति निराश न हों….7 तारीख को आ रहे हैं लालू प्रसाद आपके शहर में!!!
;)😆😜

जीवन की प्रार्थमिकता

किसी जंगल मे एक गर्भवती हिरणी थी जिसका प्रसव होने को ही था। उसने एक तेज धार वाली नदी के किनारे घनी झाड़ियों और घास के पास एक जगह देखी जो उसे प्रसव हेतु सुरक्षित स्थान लगा। अचानक उसे प्रसव पीड़ा शुरू होने लगी, लगभग उसी समय आसमान मे काले-काले बादल छा गए और घनघोर बिजली कड़कने लगी जिससे जंगल मे आग भड़क उठी। वो घबरा गयी उसने अपनी दायीं ओर देखा, लेकिन ये क्या?
वहां एक बहेलिया उसकी ओर तीर का निशाना लगाये हुए था, उसकी बाईं ओर भी एक शेर उस पर घात लगाये हुए उसकी ओर बढ़ रहा था अब वो हिरणी क्या करे?
वो तो प्रसव पीड़ा से गुजर रही है, अब क्या होगा? क्या वो सुरक्षित रह सकेगी? क्या वो अपने बच्चे को जन्म दे सकेगी? क्या वो नवजात सुरक्षित रहेगा? या सब कुछ जंगल की आग मे जल जायेगा? अगर इनसे बच भी गयी तो क्या वो बहेलिये के तीर से बच पायेगी? या क्या वो उस खूंखार शेर के पंजों की मार से दर्दनाक मौत मारी जाएगी – जो उसकी ओर बढ़ रहा है? उसके एक ओर जंगल की आग, दूसरी ओर तेज धार वाली बहती नदी, और सामने उत्पन्न सभी संकट.., अब वो क्या करे?
लेकिन फिर उसने अपना ध्यान अपने नवआगंतुक को जन्म देने की ओर केन्द्रित कर दिया। फिर जो हुआ वो आश्चर्यजनक था।
कड़कड़ाती बिजली की चमक से शिकारी की आँखों के सामने अँधेरा छा गया, और उसके हाथों से तीर चल गया और सीधे भूखे शेर को जा लगा। बादलों से तेज वर्षा होने लगी और जंगल की आग धीरे धीरे बुझ गयी। इसी बीच हिरणी ने एक स्वस्थ शावक को जन्म दिया।
ऐसा हमारी जिन्दगी में भी होता है, जब हम चारो ओर से समस्याओं से घिर जाते हैं, नकारात्मक विचार हमारे दिमाग को जकड़ लेते हैं, कोई संभावना दिखाई नहीं देती, हमें कोई एक उपाय करना होता है, उस समय कुछ विचार बहुत ही नकारात्मक होते है, जो हमें चिंता ग्रस्त कर कुछ सोचने समझने लायक नहीं छोड़ते। ऐसे मे हमें उस हिरणी से ये शिक्षा मिलती है की हमें अपनी प्राथमिकता की ओर देखना चाहिए, जिस प्रकार हिरणी ने सभी नकारात्मक परिस्तिथियाँ उत्पन्न होने पर भी अपनी प्राथमिकता “प्रसव”पर ध्यान केन्द्रित किया, जो उसकी पहली प्राथमिकता थी, बाकी तो मौत या जिन्दगी कुछ भी उसके हाथ में था ही नहीं, और उसकी कोई भी क्रिया या प्रतिक्रिया उसकी और गर्भस्थ शिशु की जान ले सकती थी! उसी प्रकार हमें भी अपनी प्राथमिकता की ओर ही ध्यान देना चाहिए। हम अपने आप से सवाल करें, हमारा उद्देश्य क्या है, हमारा फोकस अर्थात केंद्रबिन्दु क्या है? हमारा विश्वास, हमारी आशा कहाँ है, ऐसे ही मझधार मे फंसने पर हमें अपने इश्वर को याद करना चाहिए, उस पर विश्वास करना चाहिए जो की हमारे ह्रदय में ही बसा हुआ है.., जो हमारा सच्चा रखवाला, हितैषी और साथी है।

Don’t get hanged for a Comma…!

That freedom fighter was about to be hanged inside jail. The hangman was about to remove the thin plank of wood that was the difference between life and death for the convict. The convict was Indian, hangman was Indian but the order to hang was British government’s… yeah, this story pertains to the Indian freedom struggle era. With heavy heart the hangman went up to the lever that would have removed that plank of wood. Suddenly there was mild commotion from the entrance side.

“Wait, an important message is to be received through wire … Don’t hang him till we receive it.”

It was the British jailor. Hangman’s hands froze where they were. Everybody turned towards the jailor with an expectation… a hope that the convict might get freed… he might not get hanged at all! A moment later, an orderly came running with the wire just received. But, what was that…?! It contained just three words… “HANG NOT SPARE” Communication facility was not, what it is these days and after much deliberation jailor decided to go ahead with hanging as the meaning that he had deciphered from wire was “HANG, NOT SPARE” … off course he came to know about his folly afterwards! What to do… a freedom fighter that would have been set free lost his life just because of a ‘COMMA’!

The second story is from late Mughal period. Badshah Salamat had noticed that his Naib Wazir (Deputy Minister) was absent from his court. He asked his spies to find out the whereabouts of said Wazir. By evening the reply came. It was in Persian that used to be the script of day-to-day work those days. It said,

“او مرد امروز”

(Who Aaj Mar Gaya => He died today).” Badshah Salamat was shocked to hear that but a bigger shock was awaiting him when he came to know that the spy forgot to put “Pesh” (the accented hyphen that puts in the sound “E” at “Mar” and he actually meant to say (Woh Aajmer Gaya => He went to Aajmer).

So, you see, what a misplaced stoppage (Punctuation) can do to the meaning!

In late 17th century, people started placing a common “Shiro-Rekha” (शिरो-रेखा) on all words in a sentence in Hindi. Now, try and make meaning out of following sentence from a letter written in that period:-

“कागदहीकेकारणजानगवायो।

“KAGADHIKEKAARANJAANGAWAAYO”

What do you decipher? This question was put to a “Dhobi” (A Washer man) and he deciphered the meaning as:-

“का गदही के कारण जान गवायो।”

That is, somebody (Probably a washer man) lost his Donkey (गदही) and died due to loss to his income.

Not satisfied, people wanted to consult a “Munshi” (A Clerk, or a person with literary bent of mind) as they were approaching his house, his Milkman happened to come across. Curious, he too wanted to see the letter and after seeing he couldn’t but ridicule them for not understanding a line that was very simple and obvious. It meant, according to him:-

काग दही के कारण जान गवायो।

A crow lost life for curd… (After being hit by the stone thrown by milk-woman to scare him away from the pitcher full of curd, probably …!)

People were aghast at the explanation. Suddenly, somebody noticed the Munshi coming their way. They just ran up to him with the problem at hand. The bespectacled Munshi, adjusting his specs, announced to the crowd, “Meaning is quite obvious… Someone lost very important paper and lost his life because of the urgency associated! You see…

कागद ही के कारण जान गवायो।

Till date it is not clear why someone lost his life or, what the meaning of that sentence is…! Everybody explains it according to his wisdom, his profession, his familiarity with one or other situation. So, you too don’t lose a life (Your or someone else’s) just for a silly punctuation… A Comma!

Now something deeply philosophical: –

“A Punctuation or A Stoppage, as in literature, is very important in life too, for it gives you to time to stop for a while, look around, look back, rejuvenate yourself… and then go ahead.” Think about this.

I know what you are thinking…!

“So much for your philosophies… Huuh!”

Ok, forget it!